छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक काल
छत्तीसगढ़ की सभ्यता एवं संस्कृति का विकास हमारे देश भारत के इतिहास ज्यादा भिन्न नहीं है। अपितु छत्तीसगढ़ की क्षेत्रीय संस्कृति छत्तीसगढ़ के इतिहास को एक नया आयाम तक पहुंचाती है। छत्तीसगढ़ में मिले पुरातत्व अवशेषों के माध्यम से प्राप्त जानकारियों के आधार पर यह निश्चित ही कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ का इतिहास रामायण काल कथा महाभारत काल से भी ज्यादा प्राचीन हैं। सिंघनपुर की गुफा और कबरा पहाड़ में मिले पुरातत्व अवशेष तथा शैलचित्र, यहां की पाषाण युग की इतिहास बयां करती हैं।
प्रागैतिहासिक काल या पाषाण काल मानव सभ्यता के इतिहास का ऐसा काल है जिसके अध्ययन के लिए केवल पुरातात्विक वस्तुएं ही उपलब्ध है, उस समय की कोई भी लिखित जानकारी अभी तक उपलब्ध नही हो पायी हैं।
प्रारंभ में मनुष्य की कर्मकृति पशुओं की प्रवृत्ति जैसी थी। उस समय मनुष्य मैदानी भागों में अस्थाई रूप से निवास करते थे किंतु समय में आगे जाने से यह भी पता चलता है कि कुछ समय बाद पाषाण कालीन मानवों ने गुफाओं में आश्रय लिया। उस समय के मानव पाषाण उपकरण प्रयोग में लाते थे जिसमे नुकीले धार वाले पत्थर प्रमुख है। प्रारंभ में मनुष्य अपना जीवन यापन कंदमूल तथा शिकार से पूरा किया करते थे, इसकी जानकारी हमें उनके द्वारा बनाई गईं शैलचित्र से होता है।
छत्तीसगढ़ का रायगढ़ पाषाण कालीन इतिहास की जानकारी का मुख्य स्रोत हैं।
छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक काल |
पाषाण काल को उस समय में निवासरत मानवों की सभ्यता एवं संस्कृति के आधार पर 4 भागों में बांटा गया है :-
1. पूर्व पाषाण काल
2. मध्य पाषाण काल
3. उत्तर पाषाण काल
4. नव पाषाण काल
पूर्व पाषाण काल
रायगढ़ स्थित सिंघनपुर गुफा पूर्व पाषाण कालीन मानवों के द्वारा बनाए गए शैलचित्र तथा औजार के लिये प्रसिद्ध हैं। यह छत्तीसगढ़ की प्राचीनतम गुफा है। सिंघनपुर गुफा में मानव आकृत सीढ़ी और डंडे के आकार में है। इसके अलावा मानव को शिकार करते हुए भी दिखाया गया है।
मध्य पाषाण काल
रायगढ़ स्थित कबरा पहाड़ में विभिन्न, मध्य पाषाणकालीन शैलाश्रय मिले है। इसके साथ-साथ बहुत से शैलचित्र भी कबरा पहाड़ से प्राप्त हुए है। कबरा पहाड़ में लाल रंग के छिपकली, घड़ियाल, सांभर इत्यादि पशुओं के आलावा मानव समूह का भी चित्रण हुआ है।
उत्तर पाषाण काल
गौरेला पेंड्रा मरवाही के धनपुर तथा रायगढ़ स्थित सिंघनपुर और बोतल्दा में विभिन्न उत्तर पाषाण कालीन अवशेष मिले है। इस काल में निर्मित शैलचित्र मुख्य रूप से लाल रंग के है। रायगढ़ स्थित बोतल्दा में तलवारधारी घुड़सवार को तथा नाचती हुई महिलाओं को दिखाया गया है।
नव पाषाण काल
इस समय तक आते आते मानव को स्थाई रूप से निवास करने, कृषि, पशुपालन इत्यादि का ज्ञान हो गया था। इस समय के मानवों द्वारा मृदभांड निर्माण तथा सूत कताई का कार्य प्रारंभ किया गया था। नव पाषाण काल के प्रमुख अवशेष बालोद स्थित अर्जुनी तथा राजनांदगांव स्थित चितवाडोंगरी से मिलते हैं। चितवाडोंगरी शैल समूह में ड्रैगन की आकृति का शैलचित्र विद्यमान हैं।
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