छत्तीसगढ़ के जनजातीय समूह द्वारा मृतक स्तंभ बनाने की परंपरा

 जनजातियों में समाधि देने के बाद वहां गाड़ा जाता है मृतक स्तंभ


छत्तीसगढ़ के जनजातीय समूह द्वारा मृतक स्तंभ बनाने की परंपरा

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल  बस्तर के जनजाति समुदाय मुरिया , भतरा , माड़िया , धुरवा और दोरली में मृत्यु के बाद शव को भू - समाधि ( दफन ) देने की परंपरा है । ये समुदाय इस परंपरा को कम खर्चीला और पर्यावरण मृतकस्तंभ हितैसी मानता है । यह परंपरा सैकड़ों साल से चली आरही है । 

Mritak stambh
मृतक स्तंभ

मृतकस्तंभ लकड़ी या पत्थर के होते हैं । इसमें बनी होती हैं कलाकृतियां


जिस जगह पर शव को इसमें भू - समाधि दी जाती है , वहां मृतक स्तंभ गाड़ा जाता है , ताकि दिवंगत स्वजनों की स्मृति बनी रहे । मृतकस्तंभ लकड़ी या पत्थर के होते हैं । इसमें कलाकृतियां उकेरकर आकर्षण भी बनाया जाता है । हालांकि बीमारी या दुर्घटना आदि से मौत के बाद शव जलाने की भी परंपरा है । दक्षिण बस्तर में 65 फीसद से अधिक अबादी आदिवासी समुदाय की है । प्रदेश में मुरिया , भतरा , माड़िया , धुरवा और दोरली समेत लगभग एक दर्जन समुदाय बस्तर में रहते हैं । शवों को भू - समाधि के बाद मृतक स्तंभ के अलावा कुछ क्षेत्रों में समाधि के रूप में इंट - पत्थर से मटनुमा आकार का निर्माण भी किया जाता है ।
दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर बचेली मार्ग पर स्थित मृतक स्तंभ की श्रृखंला सैकड़ों साल से है । इसी तरह जगदलपुर गीदम मार्ग पर डिलमिली के निकट सड़क किनारे स्थित लकड़ी के सैकड़ों साल पुराने मृतकस्तंभ जैसे मगालियसाइट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने धरोहर का दर्जा देकर संरक्षित किया है । 

मगालिथ साइट : ऐसे बड़े पत्थर शिला , जिसका प्रयोग किसी स्तंभ स्मारक या अन्य निर्माण केलिए किया गया हो।
कुछ ऐतिहासिक और प्रागैतिहासिक स्थलों में ऐसे महापासाणों को तराशकर और एक दूसरे में फंसने वाले हिस्से बनाकर बिना सीमेंट या मसाले के निर्माण किए जाते थे । पाषाण का ऐसा प्रयोग अधिकतर पाषाण युग और कुछ हद तक कांस्य युग में होता था । छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के उपाध्यक्ष एवं बस्तर संभाग के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर जनजातीय समुदाय में शवों को भू – समाधि ( दफन ) देने की परंपरा को विशिष्ट मानते हैं । उनका कहना है कि इससे कई उद्देश्य पूरे होते हैं । शव को दफन करने से प्रदूषण नहीं होता , यह प्रक्रिया कम खर्चीली है , गांव के समीप ही अंत्येष्टि संपन्न हो जाती है । इस परंपरा को पर्यावरण हितैषी भी कहा जा सकता है । बहुतायत में शव को दफनाने की ही परंपरा है । 

मृतक के संपूर्ण जीवन का होता है चित्रण 
मृतक स्तंभों पर मृतक के संपूर्ण जीवन का वर्णन चित्रों के माध्यम से किया जाता है जैसे वह क्या करता था या उसे क्या पसंद था उसके पास कितने पशु थे अपने जीवन में शिकार पे जाता था , घोटुल में नृत्य करता था , गांव के कार्य में सम्मलित होता था और जो अपने जीवन में कार्य किया है उसे दर्शाया जाता है , और इस मृतकस्तंभ में जन्म से लेकर मृत्यु के बीच की घटना को उकेरा या चित्रित किया जाता है ।


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