काकतीय वंश बस्तर के क्षेत्रीय राजवंश। छत्तीसगढ़ का इतिहास। प्रफुल्ल कुमारी देवी।

 काकतीय वंश बस्तर के क्षेत्रीय राजवंश

इसके पहले वाले पोस्ट में हमने छत्तीसगढ़ इतिहास के प्रागैतिहासिक काल, रामायण कालीन इतिहास, गुप्तकालीन इतिहास, मौर्य कालीन इतिहास तथा छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्र के राजवंश, सिरपुर के पाण्डु वंश, सोम वंश, शरभपुरीय वंश, नल वंश, छिंदक नागवंशी इत्यादि के बारे में जाना। आज के इस पोस्ट में हम छत्तीसगढ़ के बस्तर में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले काकतीय वंश के बारे में जानेंगे। 

बस्तर में शासन करने वाले काकतीय वंश के शासन काल को अध्ययन की दृष्टि से चार भागों में बांटकर अध्ययन किया जाता है स्वतंत्र शासन के रूप में (1324-1777 ईस्वी तक) , मराठा अधीन शासन (1777- 1818), अंग्रेज-मराठा अधीन शासन (1818-1853), अंग्रेजकालीन शासन (1854-1950)


काकतीय वंश बस्तर के क्षेत्रीय राजवंश
काकतीय वंश बस्तर के क्षेत्रीय राजवंश


छत्तीसगढ़ में स्वतंत्र सत्ता के रूप में काकतीय वंश

दक्षिणी छत्तीसगढ़ में काकतीय वंश की स्थापना अन्नमदेव ने की। इन्होंने अपनी राजधानी मांधोता बस्तर को बनाया । अन्नमदेव ने ही अपने कुलदेवी के नाम पर दंतेवाड़ा जिला में मां दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण करवाया। अन्नमदेव के अलावा हम्मीर देव, भैरव देव, पुरुषोत्तम देव, जयसिंह देव, नरसिंह देव प्रताप राज देव, जगदीश राव देव, वीर नारायण देव, वीर सिंह देव, पाल देव, राजपाल, दलपत देव तथा अजमेर देव ने स्वतंत्र रूप से छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भाग बस्तर में शासन किया। पुरुषोत्तम देव ने अपनी राजधानी मांधोता से चक्रकोट स्थानांतरित किया। पुरुषोत्तम देव के कार्यकाल में ही बस्तर क्षेत्र में मड़ई मेला की शुरुआत हुई। दलपत देव ने अपनी राजधानी जगदलपुर को बनाया तथा अपने नाम से दलपत सागर का निर्माण कराया जो कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी झील है। अजमेर सिंह को बस्तर के क्षेत्र में क्रांति का मसीहा कहा जाता है अजमेर सिंह के नेतृत्व में 1774 मे बस्तर का प्रथम जनजाति विद्रोह हल्बा विद्रोह हुआ था। दरिया देव ने ब्रिटिश अधिकारी व मराठों के साथ कूटनीतिक षड्यंत्र कर अजमेर सिंह पर आक्रमण किया था इसी के कारण काकतीय वंश का शासन मराठों के अधीन आ गया।

छत्तीसगढ़ में मराठा के अधीन काकतीय वंश 

दरियादेव ने अपने भाई अजमेर सिंह के विरुद्ध षड्यंत्र करके सत्ता प्राप्त कर लिया तथा कोटपाड़ की संधि के तहत बस्तर क्षेत्र मराठा के नियंत्रण में चला गया। दरियादेव के समय में ही भोपालपटनम का संघर्ष हुआ जब ब्रिटिश यात्री जे. टी. ब्लंट ने बीजापुर क्षेत्र के भोपालपटनम से बस्तर क्षेत्र में प्रवेश करना चाहा तो आदिवासियों ने उनके विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया फलस्वरूप जे.टी. ब्लंट को विवश होकर कोलकाता लौटना पड़ा। 

छत्तीसगढ़ में अंग्रेज-मराठाधीन काकतीय शासक

महिपाल देव आंग्ल - मराठा के अधीन शासन कर रहे थे। इन्ही के समय में 1825 ईसवी में गेंदसिंह के नेतृत्व में परलकोट का विद्रोह हुआ। महिपाल देव द्वारा मराठों को टकोली नहीं चुकाए जाने के कारण मराठा शासक ने सेनापति रामचंद्र बाघ को आक्रमण हेतु भेजा इस युद्ध में महिपाल पराजित हुआ जिसके कारण महिपाल देव ने सन 1830 में सिहावा क्षेत्र के नागपुर शासन को मराठा शासन में दे दिया। 

अंग्रेजों के अधीन काकतीय वंश का शासन

डलहौजी की हड़प नीति के द्वारा 1854 में नागपुर राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया तो मराठा साम्राज्य के अधीन रहने वाले जितने भी क्षेत्र थे वह सभी अंग्रेजों के हाथ में चले गए इसके कारण संपूर्ण छत्तीसगढ़ भी अंग्रेजों के नियंत्रण में चला गया इस प्रकार बस्तर क्षेत्र के प्रशासनिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में अंग्रेजों का हस्तक्षेप प्रारंभ हो गया। ब्रिटिश कालीन शासक के रूप में सर्वप्रथम भैरम देव ने शासन प्रारंभ किया। भैरव देव की पत्नी जुगराज कुंवर ने अपने पति तथा ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक अनुपम विरोध प्रदर्शित किया था इस संघर्ष में रानी जुगराज कुंवर की विजय हुई थी। भैरम देव की मृत्यु सन 1891 में हुई उस समय उनका बेटा रूद्र प्रताप देव 6 वर्ष के थे इस कारण अंग्रेजों ने सन 1891-1908 तक बस्तर का शासन सीधे अपने हाथों में ले लिया। रूद्रप्रताप देव के वयस्क हो जाने के फलस्वरूप 1908 में उनको प्रत्यक्ष रूप से शासन करने का अधिकार दे दिया गया। रूद्र प्रताप देव ने जगदलपुर को चौराहों की नगर के रूप में विकसित किया । रूद्रप्रताप देव के शासनकाल में ही गुंडाधुर के नेतृत्व में 1910 में बस्तर का प्रसिद्ध भूमकाल विद्रोह प्रारंभ हुआ। 

राजा रूद्र प्रताप देव की मृत्यु 1921 में हुई चूंकि इनके कोई पुत्र नहीं थे इस कारण बस्तर का शासन इनकी पुत्री प्रफुल्ल कुमारी देवी को दिया गया जो कि 12 वर्ष की नाबालिक थी। फुल कुमारी देवी को छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला शासिका होने का गौरव प्राप्त है। इनका विवाह 1927 में प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव के साथ हुआ। रानी प्रफुल्ल कुमार देवी लोक कल्याणकारिणी शासिका थी जिसके कारण इनको अंग्रेजो से बहुत संघर्ष करना पड़ा। 

प्रफुल्ल कुमारी देवी के बाद प्रवीर चंद्र भंजदेव अंतिम काकतीय शासक के रूप में बस्तर में शासन किए। प्रवीर चंद्र भंजदेव ने हीं भारतीय गणराज्य में शामिल होने के लिए रियासतों के विलय पत्र पर समझौते में हस्ताक्षर किए। प्रवीर चंद्र भंजदेव के नाम पर ही छत्तीसगढ़ शासन द्वारा प्रत्येक वर्ष तीरंदाजी के क्षेत्र में पुरस्कार दिया जाता है।

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