छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास । मौर्य वंश, गुप्त वंश, सातवाहन वंश, वाकाटक वंश।

 छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास

पिछले पोस्ट में हमने छत्तीसगढ़ के प्रागैतिहासिक कालीन इतिहास को देखा था आज इस पोस्ट में हम छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास में बौद्ध धर्म, जैन धर्म तथा मौर्य वंश, सातवाहन वंश, कुषाण वंश, वाकाटक वंश और गुप्त वंश के बारे में देखेंगे।

बौद्ध दर्शन का काल ( शताब्दी 6वी ईसा पूर्व )

भारतीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में बौद्ध दर्शन के काल को ऐतिहासिक काल माना जाता है क्योंकि इसी समय से भारतीय इतिहास में तीनों प्रकार के साक्ष्य, जिसमें पुरातात्विक, साहित्य, तथा यात्रा वृतांत शामिल है का क्रमिक रूप देखने को मिलता है। बौद्ध दर्शन के कुछ प्रमुख ग्रंथ जैसे कि अवदान शतक तथा चीनी यात्री व्हेनसॉन्ग के अनुसार महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात धर्म प्रचार के लिए छत्तीसगढ़ आए थे। 

छत्तीसगढ़ में बौद्धकालीन ऐतिहासिक स्थल

1. सिरपुर स्थित स्वास्तिक विहार
2. सिरपुर का बौद्ध टीला
3. सिरपुर का आनंद कुटी विहार
4. सिरपुर का तीवर विहार
5. मल्हार के उत्खनन से प्राप्त बौद्ध प्रतिमा

छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास
छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास


छत्तीसगढ़ में जैन दर्शन कालीन कुछ प्रमुख साक्ष्य

जांजगीर-चांपा जिले के गूंजी में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी का साक्ष्य मिला है इसके अलावा दुर्ग स्थित नगपुरा में जैन धर्म के तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी का साक्ष्य प्राप्त हुआ है। आरंग में भी जैन दर्शन से संबंधित कुछ पुराने अवशेष प्राप्त हुए हैं।


छत्तीसगढ़ में मौर्यकालीन इतिहास 

मौर्य काल में छत्तीसगढ़ कलिंग प्रांत का हिस्सा हुआ करता था जैसे ही सम्राट अशोक ने कलिंग विजय किया उसके पश्चात छत्तीसगढ़ का हिस्सा मौर्य साम्राज्य का हिस्सा बन गया।


छत्तीसगढ़ में मौर्य कालीन स्थल

1. रामगढ़ पहाड़ी सरगुजा  :- रामगढ़ की पहाड़ी में स्थित जोगीमारा की गुफा में मौर्यकालीन नर्तकी सूतनुका तथा नर्तक देवदत्त की प्रेम गाथा का वर्णन मिलता है इसके साथ ही साथ गुफा में चित्रित विभिन्न शैल चित्र जोकि पाली भाषा तथा ब्राम्ही लिपि से युक्त है। इसके अलावा सरगुजा जिले से अशोक की लाठ प्राप्त हुई है।

2. रायपुर और जांजगीर से प्राप्त सिक्के :- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर जिले में स्थित तारापुर, आरंग तथा उड़ेला से मौर्यकालीन आहत मुद्रा प्राप्त हुई हैं इसके साथ ही साथ जांजगीर जिले के ठठारी और अकलतरा से भी मौर्य कालीन सिक्के प्राप्त हुए हैं।

3. कोरिया :- कोरिया जिले के कोटाडोर से अशोक के समकालीन मूर्तियां प्राप्त हुए हैं।


छत्तीसगढ़ में सातवाहन काल के प्रमुख साक्ष्य 

छत्तीसगढ़ में सातवाहन काल के सबसे ज्यादा साक्ष्य जांजगीर-चांपा जिले से प्राप्त हुए हैं जांजगीर चांपा के बालपुर से सातवाहन कालीन मुद्राएं प्राप्त हुई है इसके अलावा जांजगीर चांपा के गूंजी नामक स्थान से कुमार वरदत्तश्री के अभिलेख मिले हैं जिसमें उल्लेख है कि वरदत्तश्री अपनी आयु बढ़ाने के लिए ब्राह्मणों को 1000 गाय दान में दिए थे। इसके अलावा जांजगीर चांपा के किरारी गांव से काष्ठ स्तंभ प्राप्त हुआ है इस काष्ठ स्तंभ लेख में सातवाहन कालीन अधिकारियों के पद और उसके नाम उल्लेखित हैं जो उस काल में प्रचलित रहे थे। इसके अलावा बिलासपुर के चकरबेड़ा क्षेत्र से रोम कालीन स्वर्ण सिक्के प्राप्त हुए हैं जो उस समय के भारतीय व्यापार का रोम के साथ संबंध को दर्शाता है साथ ही बिलासपुर में मल्हार के समीप बूढ़ीखार नामक जगह पर विष्णु जी की लेख से युक्त चतुर्भुज प्रतिमा प्राप्त हुई है जिसमें तत्कालिक राजा  वेदश्री की जानकारी मिलती है।

छत्तीसगढ़ में वाकाटक काल तथा गुप्तकाल संबंधित प्रमुख साक्ष्य 

गुप्तकालीन समय में छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोशल जबकि छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र को महाकांतार कहा जाता था। प्रयाग प्रशस्ति शिलालेख के अनुसार समुद्रगुप्त ने अपने दक्षिण विजय अभियान के दौरान दक्षिण कौशल के राजा महेंद्र सेन को हराया था। इसके अलावा समुद्रगुप्त ने महाकांतार क्षेत्र में नल वंश राजा व्याघराज को पराजित किया था। चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती का विवाह छत्तीसगढ़ में वाकाटक वंश के राजा रूद्रसेन द्वितीय के साथ हुआ था। रूद्रसेन की मृत्यु के पश्चात प्रभावती ने सत्ता की बागडोर संभाली, जिसमें गुप्त साम्राज्य के राज कर्मचारियों से सहायता ली जाती थी। देवी प्रभावती के दो पुत्र हुए थे दिवाकर सेन और दामोदर सेन। दामोदर सेन को प्रवरसेन द्वितीय के नाम से जाना जाता है। इनकी शिक्षा गुप्त साम्राज्य के राजकवि कालिदास द्वारा हुई। 

ऋद्धिपुर शिलालेख के अनुसार नल वंश शासक भवदत्त वर्मन ने छत्तीसगढ़ के इस क्षेत्र में आक्रमण कर वाकाटक नरेश नरेंद्र सेन को पराजित किया तथा उनकी राजधानी नंदीवर्धन (नागपुर) को तहस-नहस कर दिया । इसके जवाब में पृथ्वीसेन द्वितीय ने अपने पिता की हार का बदला लेने के उद्देश्य से नल वंश शासक भवदत्त वर्मन के पुत्र अर्थपति भट्टारक पर आक्रमण कर उसकी राजधानी पुष्करी को नष्ट कर दिया।
माना जाता है कि वाकाटक वंश का अंत कलचुरियों के आगमन से हुआ।

इन्हें भी देखें :-

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