छत्तीसगढ़ में चित्रकला के विभिन्न रूप
छत्तीसगढ़ में लोकचित्र की अपनी एक संपन्न परम्परा है जो विशिष्ट अवसरों , विभिन्न त्योहारों पर घर सजाने के रूप में भित्ति चित्रों , चौक , भूमि पर रंगोली के साथ ही गोदना , मेहन्दी, शरीर सज्जा में भी दिखती है। छत्तीसगढ़ की लोक चित्रों में प्रायः देवी - देवता , पौराणिक कथा , मानव , पशु , पक्षी , जीव - जन्तु , पेड़ - पौधे , लताएँ एवं विभिन्न आकृतियाँ , शुभ चिन्ह ( स्वास्तिक चिन्ह ) आदि का अंकन होता है । लोकचित्रों का रंग विधान और दृश्य विधान बड़ा ही सरल होता है । सभी लोकचित्र प्रतीकात्मक होते हैं जिनमें गहरे अर्थ और मांगलिक आशय की भावना छिपी होती हैं।
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छत्तीसगढ़ की चित्रकला |
छत्तीसगढ़ की लोकचित्र
छत्तीसगढ़ की लोकचित्र परम्परा कल्पनाशील है। यहाँ के विभिन्न चित्रांकन में, हरियाली अमावस्या पर गोबर से सवनाही का अंकन , कृष्ण जन्माष्टमी में कृष्ण कथा का चित्रण, हरतालिका में हरतालिका का चित्रण किया जाता है । नया घर बनाते समय दीवारों पर एक विशेष प्रकार के चित्र का अंकन किया जाता है जो की नोहडोरा डालना कहलाता है । यहाँ महिलाओं में गोदना लिखवाना प्रचलित है ।
छत्तीसगढ़ में चित्रकला के विभिन्न रूप
चौक या रंगोली :- छत्तीसगढ़ में रंगोली की यह कला व्यापक रूप से प्रचलित है । पहले गोबर की लिपाई की जाती है उसके ऊपर भीगे चावल के घोल से चौक बनाया जाता है ( चौक पूरना ) , चांवल के सूखे आटे से भी चौक बनाने की परंपरा छत्तीसगढ़ में विद्यमान है। छत्तीसगढ़ में सभी प्रमुख अवसर और त्यौहार पर चौक बनाया जाता है चौक में पगचिन्ह , बेलबूटे , ज्यामितीय आकृतियों एवं श्रृंखलाबद्ध सज्जा उकेरी जाती है ।
सवनाही :- सावन महीने की हरेली अमावस्या को छत्तीसगढ़ की महिलाएँ घर के मुख्य द्वार पर गोबर से सवनाही का अंकन करती हैं इसमें अगुलियों से घर के चारों ओर मोटी रेखा से घर को घेरा जाता है और मानव व पशुओं का चित्रांकन किया जाता है। हरेली के अवसर पर जादू - टोने की मान्यता को ध्यान में रखते हुए उनसे बचने के लिये ये चित्रण किया जाता है।
हरतालिका :- हरतालिका का चित्र तीजा के अवसर पर बनाया जाता है यह शिव पार्वती की पूजा का पर्व है।
गोवर्धन चित्रकारी :- दीपावली में गोवर्धन पूजा के समय धान की कोठी में समृद्धि की कामना के उद्देश्य से अनेक प्रकार के चित्र बनाकर अन्नलक्ष्मी की पूजा की जाती है ।
घर-सिंगार:- घर सजाने की कला संपूर्ण छत्तीसगढ़ में मिलती है पोती हुई दीवार पर गेरू , काजल , पीली मिट्टी से विभिन्न प्रकार की आकृतियां , रूपांकन एवं रंग रोमन किया जाता है । विवाह आदि अवसरों पर छत्तीसगढ़ में चितेर जाति के लोगों द्वारा दीवारों पर चित्रांकन किए जाते हैं , जो द्वारों पर देवी देवता , पशु - पक्षी चित्रण व विवाह प्रसंग आदि का चित्रण करते हैं
गोदना:- छत्तीसगढ़ी महिलाएँ विशेष रूप आदिवासी महिलाएं बांह , ठोढ़ी , गाल आदि पर गोदने से विभिन्न आकृतियाँ बनवाती हैं । यहाँ गोदना अत्यंत लोकप्रिय है। गोदना, लोक जीवन का प्रतीक व जीवन्त लोक चित्रकला का स्पष्ट उदाहरण हैं।
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