भारत की मन्दिर तथा मूर्ति निर्माण की शैली | Temple Style Of India

 भारत की मन्दिर तथा मूर्ति निर्माण की शैली

भारत प्राचीन काल से ही विविधताओं का देश रहा है यहां की इतिहास व संस्कृति का सुदृढ़ दर्शन मंदिरों से भी किया जा सकता है। भारत अपने विशालतम इतिहास के साथ और अपनी पुरानी संस्कृतियों के साथ आज बहुत ही तीव्र गति से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है भारत की मूर्ति निर्माण की शैली तथा मंदिर निर्माण की शैली भारत की प्राचीनतम वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा इंजीनियरिंग की बेमिसाल उदाहरण लिए हुए हैं।

भारत में प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म का प्रभाव रहा है जो कि आगे चलकर बौद्ध धर्म और जैन धर्म में विभाजित होते हुए भी अपनी सनातन संस्कृति को संजोए हुए रखा हुआ है भारत के इतिहास को देखने से पता चलता है कि अलग-अलग समय में भारत में अलग-अलग प्रकार की मूर्ति निर्माण तथा मंदिर निर्माण की शैलियों का विकास हुआ है ।

यदि हम भारत की मूर्ति निर्माण शैली की बात करें तो भारत में तीन प्रकार की मूर्ति निर्माण की शैली प्राचीन काल से प्रचलित है जिसमें से गांधार शैली सबसे प्रमुख एवं प्राचीन हैं। इसके अलावा भारत में मथुरा शैली तथा अमरावती शैली का भी विकास देखने को मिलता है।

गांधार शैली का अधिकतम विकास कुषाण शासक कनिष्क के समय में पश्चिम उत्तर भारत में हुआ था, गांधार शैली की अधिकतम मूर्तियां भगवान बुद्ध को समर्पित है भगवान बुद्ध को इस प्रकार की मूर्तियों में योग की मुद्रा में दिखाए गए हैं। जबकि मथुरा शैली का भी अधिकतम विकास गुप्त काल तथा कुषाण के काल में हुआ जिसमें भगवान बुद्ध को प्रसन्नचित होकर आशीर्वाद वाले मुद्रा में दिखाया गया है। यदि हम अमरावती शैली की बात कर रहे हैं तो इसमें पूजा और योग के बजाय संपूर्ण कहानियों का चित्रण करने का प्रयास किया गया है इसमें एक साथ कई प्रकार की मूर्तियां बनी हुई होती हैं और इस प्रकार की मूर्तियों का अधिकतम विकास भारत में सातवाहन के काल में हुआ। अमरावती शैली कि अधिकांश मूर्तियां दक्षिण भारत में देखने को मिलती है।

ठीक इसी प्रकार यदि हम मंदिर निर्माण शैली की बात करें तो भारत की मंदिर निर्माण की शैलियों को तीन भागों में बांटा जा सकता है द्रविड़ शैली, नागर शैली और वेसर शैली

द्रविड़ शैली  :-
                          द्रविड़ शैली की अधिकांश मंदिर दक्षिण भारत में दिखाई पड़ता है जिसमें श्री वृद्धेश्वर मंदिर महाबलीपुरम इत्यादि हैं। इस प्रकार के मंदिर निर्माण की शैली में चारों तरफ दीवाल का घेरा (बाउंड्री वाल) होता है तथा मंदिर के बाहर एक मुख्य दरवाजा होता है जो कि मुख्य मंदिर से बड़ा व भव्य होता है जिसे गोपुरम कहते हैं। द्रविड़ शैली का मंदिर विमानन शैली शिखर का होता है लेकिन यहां सिर्फ मुख्य मंदिर में विमान होता है बाकी मंदिर जो कि मंडप होता है उसमें विमान नहीं पाया जाता। इस प्रकार के मंदिरों में प्रदक्षिणा पथ मुख्य मंदिर के बाहर साइड होता है ।

द्रविड़ शैली मंदिर
द्रविड़ शैली मंदिर


नागर शैली :- 
                        नागर शैली की अधिकतम मंदिरों का निर्माण उत्तर भारत में देखने को मिलता है जिसमें से खजुराहो, जगन्नाथ मंदिर लक्ष्मण मंदिर इत्यादि शामिल हैं। इस प्रकार की मंदिर में शिखर curved होते हैं। इस प्रकार के मंदिर में प्रदक्षिणा पथ मुख्य मंदिर के अंदर ही होता है। इस प्रकार के मंदिर के चारों ओर दीवालो का घेरा नहीं होता है तथा मंदिरों के अंदर तलाब  कुएं भी लगभग नहीं पाए जाते।

नागर शैली मंदिर
नागर शैली मंदिर


वेसर शैली :-
                       पूरे मध्य भारत में बेसर शैली की अधिकांश मंदिर पाई जाती है बेसर शैली, नागर शैली तथा द्रविड़ शैली का मिलाजुला रूप है इस प्रकार की मंदिर में शिखर को तथा मंडप को अत्यधिक सुंदर बनाया जाता है।




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